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जल संकट पर गम्भीर होने की जरूरत !
जल संकट देश की प्रमुख समस्याओ में एक है । देश में भूगर्भीय जल के अत्यधिक दोहन से जल स्तर दिन ब दिन नीचे जा रहा है ।केंदीय जल आयोग द्वारा प्रकाशित आंकड़ो के अनुसार बड़े जलाशयों का जल 2013 के मुकाबले 2014 में कम हो गया है । जल स्तर के नीचे चले जाने के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हमलोग दोषी हैं । 10 वर्ष पहले अगर 30 मीटर की खुदाई पर पानी मिल जाता था वहीं अभी 60 -70 मीटर की खुदाई पर पानी मिलता है इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि इन वर्षो में जल स्तर कितना निचे चला गया ।आयोग के अनुसार इन दस राज्यों में गुजरात ,हिमाचल प्रदेश ,झारखण्ड ,महाराष्ट्र ,कर्नाटक ,तमिलनाडु ,उतराखंड ,त्रिपुरा ,केरल जल स्तर में काफी गिरावट आई है ।आकड़ो से पता चलता है कि प्रत्येक साल जल स्तर तेजी से निचे जा रहा है । कुछ पर्यावरणविदों द्वारा इस समस्या पर चिंता जताई जाती है लेकिन सरकार या आम लोगो द्वारा इस समस्या से निपटने के लिए कोई कदम नही उठाया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है । सिचाई के लिए भूमिगत जल का 70 फीसदी उपयोग होता है तथा घरेलु उपयोग में 80 फीसदी भूमिगत जल का उपयोग होता है । भूजल के नीचे जाने के स्रोतों पर यदि गोर करे तो प्रमुख कारण जंगलो की अधाधुंध कटाई के कारन वर्षा की कमी है ।पेड़ पोधों की संख्या में कमी की वजह से सामान्य रूप से वर्षा नही हो रही है या यूं कहें तो धरती के जितने पानी का उपयोग हम करते हैं उतना पानी वर्षा के माध्यम से धरती को नही मिल पाता । आम लोग जल समस्या को गंभीर दृष्टि से नही देखते हैं जबकि जल को सीमित वस्तु के रूप में देखा जाना चाहिए । अगर इसी अनुपात में जल स्तर नीचे जाता रहा तो भारत 2025 तक जल संकट वाला देश हो जायेगा । सामान्य उपाय कर हम इस समस्या से निपट सकते हैं ।वर्षा पानी को संरक्षित कर ,तलाबो,नलकूपो का निर्माण कर, ताकि छोटे छोटे चेक डेम का निर्माण कर इस समस्या से निपटने के लिए प्रयास कर सकते हैं ताकि जल भूमिगत हो सके और वर्षा का पानी नदियों बहकर ना चला जाये ।
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