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आर्थिक विषमता को दूर करने की जरूरत

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आर्थिक विषमता को दूर करने की जरुरत

देश आज आर्थिक विषमता से गुजर रहा है एक तबका जहाँ जरूरत से अधिक कमाई कर रहा है वहीं दूसरा तबका न्यूनतम देनिक जरुरतो को पूरा करने जितना भी कमाई नही कर पा रहा है ।देश में करोड़पतियों और अरब पतियों की संख्या में वृद्धि हो रही है और दूसरी तरफ समान मजदूरी निर्धारण के आभाव में मजदूर वर्ग भूखे पेट सोने को मजबूर हैं । किसी देश के विकास के लिए आर्थिक विकाश महत्वपूर्ण है आर्थिक मजबूती के बिना देश का विकाश सम्भव नही है देश वर्तमान में आर्थिक विषमता का दंश झेल रहा है । देश में सांसद के वेतन वृद्धि और क्षेत्रीय भत्ते की वृद्धि सम्बन्धित फाईल वित्त मंत्रालय को तुरत भेज दी जाती है और संभवत मंजूरी भी जल्द ही मिल जाएगी । इससे सांसदों का वेतन तथा क्षेत्रीय भत्ता लगभग दुगुना हो जायेगा ।संसंद के शीतकालीन सत्र से पता चलता है कि हमारे द्वारा चुने गये सांसद हमारी समस्याओ पर कितना गंभीर हैं । एक आंकड़े के अनुसार संसद को चलाने में प्रति मिनट 29 हजार रूपये खर्च होता है ऐसे में शीतकालीन सत्र में जरूरी बहस नही होने से देश का करोड़ो रुपया बर्बाद हो गया लेकिन इसकी चिंता किसे है ? सांसद के ऐसे आचरण से जनता को काफी नुकसान हुआ है । दिल्ली सरकार ने भी अपने विधायको का वेतन तथा सुविधाएँ बढ़ा दी है जनता को तमाम सुविधाए देने का वादा करने वाले विधायक अब अपनी सुविधा बढ़ाने में लगे हैं । सांसद,विधायक के साथ साथ सरकारी कर्मचारियों के भी अच्छे दिन आ गये ।सरकारी कर्मचारी को 7 वे वेतन आयोग के अनुसार 2016 से नये वेतनमान के तहत वेतन भुगतान होगा । 7वा वेतनमान लागु होने से सरकारी कर्मचारियों का वेतन पहले से अधिक हो जायेगा ।

दूसरी और मजदूरों का काम के आधार पर न्यूनतम मजदूरी का निर्धारण नही हो पाया है ना ही कोई ठोस नीति ही बन पाई है जिससे मजदूर वर्ग भी अपनी देनिक जरुरतो को पूरा कर सके । देश के किसान सूखे की मार झेल रहे हैं आर्थिक तंगी के कारन लाखो किसानो ने आत्महत्या कर ली ।इस समस्या से निबटने के लिए सिर्फ कागजी घोषणाएं हो रही हैं ।अब सवाल यह उठता है कि किसान तथा मजदूर वर्गो का विकास केसे हो ? ै जिस प्रकार सांसदों के वेतन भत्ते और क्षेत्रीय भत्ते में वृद्धि ,विधायको के वेतन भत्ते में वृद्धि ,सरकारी कर्मचारियों के वेतन में वृद्धि की जाती है उसी प्रकार मजदूर तथा किसानो के हितो के लिए ठोस निति बनाकर उन्हें भी समान अधिकार प्रदान करने की आवश्यकता है जिससे आर्थिक विषमता की खाई पट सके तथा निर्माता और अन्नदाता भी अपने देनिक जरुरतो को पूरा कर सके ।

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