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झारखंड में जल संरक्षण के लिए डोभा नीति कितनी कारगर।
पूरा देश आज जल की समस्या से जूझ रहा है।भूतल का जल दिन ब दिन नीचे जा रहा है।कई राज्यों में जल की समस्या अधिक होने की वजह से लोग अपने घर गांव छोड़कर अन्य जगहों पर जाने को विवश हैं।जल की समस्या की मुख्य वजह धरातल जल का अत्यधिक दोहन है।जिस मात्रा में धराती के नीचे से जल को निकाला जाता है उसकी अपेक्षा बहुत कम जल धरती के नीचे जाता है। इसका मुख्य कारण वर्षा जल के संचयन का अभाव है।वर्षा का जल नाला ,जोरिया,नदियों के माध्यम से बह जाती है इसलिए जल संरक्षित नहीं हो पाता है। झारखंड सरकार द्वारा राज्य में वर्षा के पहले कृषि विभाग के तहत भूमि संरक्षण निदेशालय से एक लाख डोभा निर्माण का लक्ष्य रखा गया है तथा ग्रामीण विकास विभाग के तहत मनरेगा से 1.5 लाख डोभा निर्माण कराने का निर्णय लिया गया है ताकि वर्षा जल को संरक्षित किया जा सके तथा सिंचाई के लिए उपयोग किया जा सके। सूबे की सरकार द्वारा कृषि विभाग के द्वारा निर्मित डोभा पर 200 करोड़ रूपया खर्च किया जाएगा । डोभा निर्माण के लिए राशि सीधे के बैंक अकाउंट में दी जाएगी ताकि बिचौलियों से बचाया जा सके । लाभुक को डोभा का निर्माण खुद मशीन (जेसीबी) से कराना है। सभी जिलों के उपायुक्त इसकी देखरेख की जिम्मेवारी सौंपी गई है।
देखना यह है कि सरकार की डोभा नीति जल संरक्षण की दिशा में कितना कारगर साबित होती है क्योंकि इसके पूर्व भी सिंचाई सुविधा,मछली पालन,जल संरक्षण के लिए मनरेगा से सूबे में तालाब ततथा सिंचाई कूप का निर्माण किया गया था परन्तु ग्रामसभा के सशक्त नहीं होने और भ्रष्टाचारकी वजह से अधिक्तर तलाबों का निर्माण सही जगह पर नहीं किया गया या कम खुदाई कर पूरे पैसे की निकासी कर ली गई जिससे अधिकांश तलाबों में दो महीने भी जल नहीं टिकता है। डोभा निर्माण के लिए योजना के सफल और सही क्रियान्वयन से जल संरक्षण की दिशा में सरकार का काम सही साबित होगा अन्यथा सरकारी पैसों की एक बार फिर बर्बादी होगी । तमाम सरकारी प्रयत्नों के बावजूद जल संरक्षण की दिशा में आम लोगों को पहल करने के साथ साथ जल का। सीमित उपयोग करना तथा जल को भविष्य के लिए बचाकर रखने के लिए जनजागरण आवश्यक है।
प्रताप तिवारी
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